Monday, January 11, 2010

यादें..याद आतीं हैं

आज नए साल को शुरू हुए पूरे ११दिन हो चुके हैं.......वैसे तो लोग साल के आखिरी दिनों में ही साल भर का लेखा-जोखा कर लेते हैं.....लेकिन साल के आखिरी दिन मेरे लिए व्यस्तता से भरे हुए रहे.....ऐसा नहीं है कि मैं पार्टी कि तैयारियों में लगी थी....क्यूंकि मैं नए साल की शुरुआत पार्टी से करने में विश्वास नहीं रखती..........दरअसल हमने घर शिफ्ट किया.....जिसके साथ ही पुणे भी हमसे छुट गया...साथ ही साथ कई परिचित भी....ख़ुशी की बात ये रही की अब हमारा पूरा परिवार साथ होगा........पुणे को छोड़ते हुए दुःख तो हुआ क्यूंकि कई सालों के बाद मैंने यहाँ फिर से दोस्ती की............इसलिए मैं अपने नए साल के पहले ब्लॉग में अपनी पुणे की यादों को जगह देना चाहती हूँ..............ये है हमारी सोसायटी का मेनगेट....ये एशिया का सबसे लम्बा गेट है......सुबह-शाम लोगों को वॉक करने के लिए यहाँ काफी जगह है.......इसी तरह की लम्बी सड़कों, जिनमे गाड़ियों की चिल्ल-पौं नहीं थीं.....हम वॉक का आनंद लिया करते....ऐसे मे हमारा साक्षी बनता ये पीपल का पेड़....वैसे तो ये औरों के लिए एक आम पीपल का पेड़ हो सकता है....लेकिन हममें से अधिकाँश वॉक करने वाले इसे छूकर प्रणाम करना नहीं भूलते थे.....ये आदत सभी को एक-दुसरे को देखकर लगी...मुझे ये आदत मेरी इस सहेली....मृणाल से लगी....इसलिए ही मैंने इन्हें पेड़ के साथ ही यादों में रखा............
ये हैं मेरे...स्टुडेंट....अदिति,सिद्धार्थ और dong जिन्होंने मुझे स्टुडेंट से टीचर का दर्ज़ा दिलाया....वैसे इन्हें पढ़ाते हुए तो मैंने कभी इनकी तस्वीर नहीं ली....लेकिन ये तस्वीर तब की है जब मैंने इन्हें इनके अच्छे नम्बर आने पर इनाम के तौर पर इन्हें थ्री-डी फिल्म दिखाई थी.........इसके बाद से ये केवल थ्री-डी फिल्म देखने के लिए ज्यादा मेहनत करने लगे थे... इनके साथ भी मेरी काफी अच्छी जमती थी...... ये केवल dong का एक नाटक है....ये तब की फोटो है...जब एक दिन वो पढ़ते हुए सो गया था...लेकिन मेरे फोटो खींचने से पहले ही उठकर इस तरह बैठ गया.....

यहाँ मेरी और भी कई लोगों से पहचान हुई...जैसे श्रीदेवी....जो की मेरी पहली सहेली बनी...उससे मुझे जीवन को व्यवस्थित ढंग से जीने का तरीका मिला.........वो जिस तरह से अपनी जिंदगी को संभाल कर रखती...ये मुझे प्रभावित करता था.......
सुमेधा...मेरी एक ऐसी सहेली जिनके साथ मुझे अपनी चिंता नहीं करनी पड़ती....ये मुझसे ज्यादा मेरी चिंता करतीं....हमारी दोस्ती गणेश-पूजा के दौरान एक प्रतियोगिता में हुई थी,......इनकी बेटी सृष्टी से भी मेरी अच्छी दोस्ती है........

मैथिलि..से मेरी पहचान सृष्टी ने ही करवाई...पिछली गणेश-पूजा के दौरान...हम सोसायटी में फंड जमा करने के लिए साथ में जाते थे..... हम सभी सृष्टी के घर पर जमा होते...और बहुत सारी मस्ती होती...फंड जमा करने में कितना मज़ा है...ये मुझे इस साल पता चला....अब तक चंदा देने से मना करने के बहाने पता थे....लेकिन इस साल पैसे जमा करने का गुर सीखा...

कुछ
ऐसे भी लोग हुए जिनसे पूरे परिवार की जान-पहचान बनी....जैसे की हमारे पडोसी....इनके दोनों बच्चे मेरे स्टुडेंट थे.....अदिति और आदित्य....उनकी मम्मी का व्यवहार बहुत ही अच्छा था...हमारे पुणे छोड़ने से ठीक पहले...इन्होने हमारी काफी मदद की....मेरी मम्मी के साथ भी इनकी अच्छी जमती थी....

यादें तो और भी है......बस ख़ुशी इस बात की है कि इस बार मुझे इन यादों को संजोने का समय मिला...........

3 comments:

Udan Tashtari said...

चलिये, आपने पुणे की यादें यहाँ सहेज ली...शुभकामनाएँ.

अन्तर सोहिल said...

यादें तो रहेंगी ही
ये सब लोग, वो गेट, वो पीपल भी तो आपको याद करेंगें

प्रणाम

संजय भास्‍कर said...

चलिये, आपने पुणे की यादें यहाँ सहेज ली...शुभकामनाएँ.