Friday, August 20, 2010

कोई मिल गया


आज का दिन मेरी ज़िन्दगी का सबसे सुनहरा दिन है....आज मुझे अपनी एक बिछड़ी सहेली मिल गई...राखी सिंग चंदेल...जब मैं सारी सहेलियों से बिछड़ी थी तब ये ही एक ऐसी सहेली थी जिसने पत्र-व्यवहार काफी लबे समय तक जारी रखा....लेकिन बाद में उसकी व्यस्तता बढती गई और पत्र कम होते-होते बंद हो गए....फिर घर सिफ्टिंग के समय मुझसे इसका पता भी गुम गया...और हम कभी बाते न कर सके....

वैसे मैं बहुत ज्यादा नेट चलाने वालों में से नहीं हूँ....सो ज्यादा साइट्स पर भी मेरा आना-जाना नहीं है.....कुछ दिनों पहले अपनी ममेरी और मौसेरी बहनों के कहने पर ऑरकुट ज्वाइन किया....तो मुझे लगा क्यूँ न अपनी सहेलियों को ढूंढने का प्रयास किया जाये...मुझे उनके नाम पता थे....ये पता नहीं था कि उनकी शादी हो चुकी है या नहीं...फिर भी मैंने शहर और नाम के आधार पर उनकी तलाश की....कुछ जो उनसे मिलते-जुलते लगे उन्हें पूछा भी.....आज सुबह जब नेट लगाया तो पता चला...कि मेरी इस खोज का असर हुआ है...कुछ ने मेरी सहेलियां नहीं होने के बावजूद मुझे सहेली बनाया...और सबसे ख़ुशी की बात ये हुई की...मुझे अपनी एक सहेली मिल गई...

इसी ख़ुशी को मैंने सभी के साथ बाटने की सोची और आ गई यहाँ......मैं ऑरकुट का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ...जिसने मुझमे ये आस जगाई की शायद अब मैं अपनी सारी सहेलियों से मिल सकूं...आज सबसे बड़ी ख़ुशी का दिन है...मेरी कहानी में....

Friday, June 25, 2010

कुछ बातें

बचपन से ही जब मुझे घर पर छोड़ कर दोनों भाई स्कूल जाया करते थे....मुझे बहुत बुरा लगता था और मैं बस इंतज़ार किया करती थी....न सिर्फ उनके आने का बल्कि जल्दी से बड़ी होकर अपने स्कूल जाने का भी....और जब वो दिन आया....मेरी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था.......मैंने कई बच्चों को रोते हुए स्कूल जाते देखा है....लेकिन मैं स्कूल जाने के लिए रोया करती थी....क्यूंकि तेज़ बारिश में कई बार रिक्शेवाले भइया नहीं आया करते थे....और घर पर इतनी दूर तक जाने के लिए साधन नहीं होता था....मुझे वाकई स्कूल बहुत पसंद था....मुझे छुट्टियां बिलकुल भी पसंद नहीं आती थी....हमारे स्कूल में दीपावली की छुट्टियां पूरे १ महीने की लगती थीं.....सभी इस बात से काफी खुश रहा करते थे....मुझे भी थोड़ी ख़ुशी होती थी कि त्यौहार अच्छी तरह मनाएंगे....लेकिन दुःख भी रहता था कि अब सहेलियों से महीने भर मिलने नहीं मिलेगा....इसका एक कारण था...हमारा स्कूल स्टील प्लांट का था....सो मेरी अधिकाँश सहेलियां रेलवे क्रॉसिंग के पार ही रहा करती थीं...जबकि हम क्रॉसिंग के इस पार रहा करते थे.....इसलिए उनसे केवल स्कूल में ही मिल पाती थी....


वैसे तो मुझे हमेशा ही उनका ख्याल रहता है....लेकिन कल मुझे उनकी बड़ी याद आ रही थी....जब हम भिलाई छोड़कर आये...तब मेरे पास अपनी कुछ सहेलियों का पता तो था....लेकिन नंबर नहीं...इस लिए अब मेरे पास अपनी स्कूल की यादों के अलावा कुछ नहीं है......पहले भी रेल की पटरियां हमें रोज़ बाँटने की साजिश किया करती थीं...लेकिन हमने उन्हें कभी सफल नहीं होने दिया....सो उन्होंने ११ साल पहले ऐसी साजिश की....कि हम आज तक नहीं मिल पाए....मुझे पूरा विश्वास है...हम पटरियों की इस साजिश को भी जल्द ही नाकाम करेंगे...

किसी भी साजिश की कोई जगह नहीं..... मेरी कहानी में.....

Friday, April 9, 2010

स्पोर्ट्स-डे की वो मार्चपास्ट

अपनी जीवन यात्रा लिखते-लिखते अचानक अतीत से वर्तमान में चली आई थी.....इससे बीच के कुछ वर्ष पीछे छूट गए...अब वो बार-बार मुझसे अपना स्थान मांग रहे हैं...कहते हैं," हमारे बिना तुम्हारी जीवन-यात्रा कैसे पूरी हो सकती है...?"......मुझे इनकी याद तो थी...लेकिन एक बार जब कोई अपने अतीत से वर्तमान में आ जाता है तो उसे वापस अतीत में जाना मुश्किल लगता है.........अगर बचपन कि बात छोड़ें..तो अधिकाँश लोगों को अपने अतीत से कोई खास लगाव नहीं होता.....लेकिन मैं उन अधिकाँश लोगों में से नहीं हूँ.....मुझे अपने अच्छी और बुरी सारी यादें प्रिय है....सो मैंने फिर से अपने अतीत को अपने यादों के पन्नों में समेटने का इरादा किया है....हो सकता है...उन यादों में जीते हुए कुछ ऐसी बातें भी याद आ जाएँ जो मेरे स्मृति पटल पर धुंधली हो चुकी हों........

स्कूल के बारे में तो जितना लिखूं उतना कम लगता है....स्कूल का हर दिन मेरे मन में अंकित है....आज स्कूल का 'स्पोर्ट्स डे' याद आ रहा है...करीब महीने भर पहले से तैयारी शुरू रहती थी....सारी क्लास को दौड़ाया जाता था...और उनमे से जितने वाली लड़कियों को एक साथ दौड़ाते थे...इस तरह कुछ १० लड़कियों को स्पोर्ट्स डे की रेस के लिए चुना जाता था......मुझे स्पोर्ट्स में कोई ख़ास दिलचस्पी तो नहीं थी...लेकिन फिर भी सहेलियों के साथ ग्राउंड में जाकर तैयारियां देखती और अगर मदद की ज़रूरत हो तो जरूर आगे रहतीं...हम कभी-कभी यूँ ही स्पोर्ट्स में पार्ट भी ले लेती....

एक बार स्पोर्ट्स डे की तैयारियों को देखने के लिए ही हमारा ग्रुप ग्राउंड में गया......मार्चपास्ट हो रहा था...एक लड़की कम हो रही थी....हमारी हिंदी टीचर ने मुझे खींचकर उस जगह पर लगा दिया...मैंने मैडम से कहा कि मुझे मार्चपास्ट नहीं आता....तो उन्होंने कहा.."...तो सीख लो....तुमको इस बार मार्चपास्ट करना है..."अब मैडम को तो कुछ बोल नहीं सकती थी...सो प्रेक्टिस में लग गयी....दूर खड़ी सहेलियां मुझे देखकर मज़े लेती रहीं॥

मार्चपास्ट....कोई आसान काम नहीं था...अब तक खड़े-खड़े देखते थे ,तो लगता था...बस हाँथ हिलाते हुए आगे बढ़ना है..और क्या...?.........सोचने और करने में क्या फर्क है ये उस दिन जाना....कभी दोनों हाँथ एक साथ आगे-पीछे होने लगते,कभी बाकियों से हाँथ-पैर का तालमेल नहीं मिलता और हाँथ टकराता....आखिरकार २ दिन मेहनत करके मार्चपास्ट की अ,ब,स तो आ गयी...पर २ दिन में परीक्षा भी देनी थी...

स्पोर्ट्स-डे के दिन आखिरी प्रेक्टिस थी....उस प्रेक्टिस के दौरान थोड़ी गलती हो गयी और दीदी ने मार्चपास्ट करने से मना कर दिया.....२ दिन पहले तक तो मैं भी यही चाहती थी..लेकिन जब मार्चपास्ट से निकाला गया...तो बहुत बुरा लगा...अगर कोई जी-जान से तैयारी करके आये और उसे परीक्षा ही देने न मिले तो वो क्या करे...?..वो खुद को फेल समझे या पास...?.....उसे तो ये जानने का मौका ही नहीं मिला॥?..हम इंसान भी अजीब होते हैं...पहले तो किसी काम को बिना मन के दूसरों के दबाव में करते हैं...लेकिन जब उस काम को करने से मना कर दिया जाये...तो उसे न कर पाने का दबाव महसूस करते हैं..


सच कहूँ तो....मुझे बहुत बुरा लगा लेकिन मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और अपनी सहेलियों के पास चली गयी...मेरी बात सुनकर और उतरी सूरत देखकर....वो मुझे लेकर दीदी के पास गयी और उन्हें बताया कि मैं केवल २ दिनों से ही प्रेक्टिस कर रही हूँ...और मैडम के कहने पर मुझे ये करना पड़ा....तब दीदी ने मुझे आगे से ध्यान रखने के लिए कहकर वापस ले लिया....

उस दिन की मार्चपास्ट बहुत अच्छी हुई....उस साल मैंने व्हा- ड्रेस में मार्चपास्ट किया...अगले साल स्काउट के ग्रुप में मार्चपास्ट किया..और उसके अगले साल एन सी सी के ग्रुप में मार्चपास्ट किया......अगर उस दिन मैडम मुझे मार्चपास्ट के लिए खड़े न करतीं या मेरी सहेलियां दीदी से बात न करती या दीदी मुझे वापस न लेतीं,तो शायद मैं मार्चपास्ट को चलते हुए हाँथ हिलाना ही समझती...और कभी हांथों और पैरों के तालमेल को नहीं जान पाती.......मैं आज उन सभी का धन्यवाद करती हूँ...

स्पोर्ट्स-डे की उस मार्चपास्ट से जुडी ये छोटी सी याद भी एक बड़ा स्थान रखती है....मेरी कहानी में........

Wednesday, March 3, 2010

यादों से होली

होली...........रंगों से भरा त्यौहार.....जिसमे किसी भी तबके में कोई अंतर नहीं होता.........हर एक बस रंगों से सराबोर होता है....लेकिन कोई-कोई अपने दोस्तों से दूर होकर केवल दूसरों को रंगों से खेलते हुए और खुशियाँ मानते हुए देखता है,कभी खुश होता है...तो कभी अपने दोस्तों को याद करके उदास.........और ये लिखते हुए थोडा बुरा लग रहा है...लेकिन इस होली मेरा यही हाल रहा.........होली पर कई पकवान बनाये....लेकिन रंग खेलने का कोई मौका नहीं मिला...घर पर गुलाल का टीका लगाया...और खिड़की से दूसरों को एक-दूसरे के पीछे रंग लेकर दौड़ते देखती रही....मन की होली न खेल पाने की खीज,चिडचिडाहट का रूप ले रही थी.....

कुछ देर खुद को दूसरे कामों में लगाया.....फिर पास से गाने की आवाज़ आने लगी और मुझे पिछले साल की होली की याद दिला गयी..........वैसे मुझे बचपन से होली ख़ास पसंद नहीं रही है.....मैं सिर्फ अपनी एक सहेली के साथ होली खेला करती थी...जो की रंग की जगह गुनगुना पानी फेंका करती थी.....लेकिन पिछले साल कई सहेलियां बनी...नयी सोसाइटी में होली पहली बार मनाई जा रही थी...छोटी-सी होली बनाकर जलाई गयी और रेन डांस का थीम रखा गया...हम सभी सहेलियों ने काफी मस्ती की और बहुत मज़ा आया था....कई सालों के बाद मैंने होली खेली थी...और हमें बहुत अच्छा लगा था.....लेकिन इस होली में मैं अपनी सहेलियों से दूर हो चुकी हूँ सो होली भी सुखी गयी.............

वैसे यहाँ भी होली जलाई गयी...एक बात अजीब लगी कि यहाँ कदम-कदम पर होली जलाई जा रही थी....हमारी बिल्डिंग के पास ही ३ होलियाँ जली...और आसपास जितनी भी सोसायटी हैं,सभी में एक-एक होली जलाई गयी.....इस तरह से हमेशा ग्रीन मुंबई के बारे में सोचने वाले मुंबई वासियों ने एक रात में ही मुंबई की वायु को कई गुना ज्यादा प्रदूषित कर दिया....और इस तरह से पास-पास बनी कई होलियों ने ये भी बताया की यहाँ लोगों के दिलों में भी कितनी दूरियां हैं...

Wednesday, January 20, 2010

सरस्वती-पूजा और केसरिया चावल

आज सरस्वती पूजा थी....स्कूल के दिनों में हम सुबह जल्दी स्कूल जाकर पूजा की तैयारियां किया करते थे....सरस्वती वंदना,पूजा,प्रसाद वितरण और फिर छुट्टी हो जाया करती थी.....जब से स्कूल जाना बंद किया,घर पर ही पूजा कर लिया करती...हर साल की तरह इस साल भी सरस्वती पूजा की....

सरस्वती पूजा पर केसरिया वस्त्र पहना जाता है...सरस्वती माँ के साथ-साथ उनके वाहन मोर और वीणा की भी पूजा की है..मोर की पूजा करके उसकी तरह मधुर बोलने की प्रेरणा ली जाती है....चित्र में मोर न होने पर मोरपंख की पूजा भी की जा सकती है...घर पर जो भी वाद्ययंत्र होते हैं उनकी भी पूजा की जाती है....केसरिया(बसंती) फूलों के गुलदस्ते की पूजा भी होती है....केसरिया रंग का प्रसाद चढ़ाया जाता है....सो मुझे आज एक नयी रेसिपी सिखने को भी मिली..केसरिया चावल...ये सरस्वती पूजा का मुख्य प्रसाद होता है...

आज आज मैंने भी इसी तरह पूजा करके अपने और देशवासियों के लिए माता से ज्ञान का वरदान माँगा...आज काली मंदिर जाकर सरस्वती पूजा देखने का मौका भी मिला...आज तक सरस्वती माता को सफ़ेद वस्त्र में ही देखा था...आज पहली बार माँ को केसरिये(बसंती)रंग में देखकर मैं अभिभूत हो गयी...

आप सभी को सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें....सरस्वती माँ आप सभी के जीवन को ज्ञान के प्रकाश से रौशन करे...

Thursday, January 14, 2010

तिल का लड्डू

मकर संक्रांति....पता नहीं लोगों को ये नाम सुनकर क्या याद आता है मुझे तो ये नाम सुनते साथ ही तिल की चक्की,लड्डू वगैरह याद आ जाते हैं...बचपन से ही इस दिन हम तिल-गुड आदि की बनी चीजें खाया और दान दिया करते थे..कई लोग खिचड़ी भी दान देते हैं....मम्मी बहुत ही स्वादिष्ट तिल की चक्की बनाते हैं.....पिछले साल पुणे में थे...वहाँ सभी एक-दूसरे को तिल की बनी हुई मिठाई देकर कहते थे.."तिल गुड घ्या...गुड-गुड बोला.."मतलब तिल-गुड खाओ...और गुड की तरह मीठा बोलो....

इस साल की संक्रांति कुछ अलग है....क्यूंकि आज तक हमने मम्मी के हांथों से बनी तिल की मिठाइयाँ ही खाई थीं...लेकिन आज पहली बार मैंने भी इसे बनाना सीखा...कुछ गड़बड़ जरूर हुई..लेकिन परिणाम अच्छा निकला....

वैसे मुझे खाना बनाना खास पसंद नहीं है....पता नहीं क्यूँ..?..मैं कई बार महिलाओं को देखती हूँ...कि वो नयी रेसिपी सीखने में पूरा समय लगाती हैं....दिन-दिन भर कुछ न कुछ नया बनाती रहती हैं....ये नज़ारा मुझे अपनी मम्मी के साथ भी देखने मिलता है....ऐसी सभी महिलाओं(मेरी मम्मी को मिलाकर)...को मेरा सलाम....शायद मैं भी कभी इनमें शामिल हो पाऊँ....

खैर...आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें...

Monday, January 11, 2010

यादें..याद आतीं हैं

आज नए साल को शुरू हुए पूरे ११दिन हो चुके हैं.......वैसे तो लोग साल के आखिरी दिनों में ही साल भर का लेखा-जोखा कर लेते हैं.....लेकिन साल के आखिरी दिन मेरे लिए व्यस्तता से भरे हुए रहे.....ऐसा नहीं है कि मैं पार्टी कि तैयारियों में लगी थी....क्यूंकि मैं नए साल की शुरुआत पार्टी से करने में विश्वास नहीं रखती..........दरअसल हमने घर शिफ्ट किया.....जिसके साथ ही पुणे भी हमसे छुट गया...साथ ही साथ कई परिचित भी....ख़ुशी की बात ये रही की अब हमारा पूरा परिवार साथ होगा........पुणे को छोड़ते हुए दुःख तो हुआ क्यूंकि कई सालों के बाद मैंने यहाँ फिर से दोस्ती की............इसलिए मैं अपने नए साल के पहले ब्लॉग में अपनी पुणे की यादों को जगह देना चाहती हूँ..............ये है हमारी सोसायटी का मेनगेट....ये एशिया का सबसे लम्बा गेट है......सुबह-शाम लोगों को वॉक करने के लिए यहाँ काफी जगह है.......इसी तरह की लम्बी सड़कों, जिनमे गाड़ियों की चिल्ल-पौं नहीं थीं.....हम वॉक का आनंद लिया करते....ऐसे मे हमारा साक्षी बनता ये पीपल का पेड़....वैसे तो ये औरों के लिए एक आम पीपल का पेड़ हो सकता है....लेकिन हममें से अधिकाँश वॉक करने वाले इसे छूकर प्रणाम करना नहीं भूलते थे.....ये आदत सभी को एक-दुसरे को देखकर लगी...मुझे ये आदत मेरी इस सहेली....मृणाल से लगी....इसलिए ही मैंने इन्हें पेड़ के साथ ही यादों में रखा............
ये हैं मेरे...स्टुडेंट....अदिति,सिद्धार्थ और dong जिन्होंने मुझे स्टुडेंट से टीचर का दर्ज़ा दिलाया....वैसे इन्हें पढ़ाते हुए तो मैंने कभी इनकी तस्वीर नहीं ली....लेकिन ये तस्वीर तब की है जब मैंने इन्हें इनके अच्छे नम्बर आने पर इनाम के तौर पर इन्हें थ्री-डी फिल्म दिखाई थी.........इसके बाद से ये केवल थ्री-डी फिल्म देखने के लिए ज्यादा मेहनत करने लगे थे... इनके साथ भी मेरी काफी अच्छी जमती थी...... ये केवल dong का एक नाटक है....ये तब की फोटो है...जब एक दिन वो पढ़ते हुए सो गया था...लेकिन मेरे फोटो खींचने से पहले ही उठकर इस तरह बैठ गया.....

यहाँ मेरी और भी कई लोगों से पहचान हुई...जैसे श्रीदेवी....जो की मेरी पहली सहेली बनी...उससे मुझे जीवन को व्यवस्थित ढंग से जीने का तरीका मिला.........वो जिस तरह से अपनी जिंदगी को संभाल कर रखती...ये मुझे प्रभावित करता था.......
सुमेधा...मेरी एक ऐसी सहेली जिनके साथ मुझे अपनी चिंता नहीं करनी पड़ती....ये मुझसे ज्यादा मेरी चिंता करतीं....हमारी दोस्ती गणेश-पूजा के दौरान एक प्रतियोगिता में हुई थी,......इनकी बेटी सृष्टी से भी मेरी अच्छी दोस्ती है........

मैथिलि..से मेरी पहचान सृष्टी ने ही करवाई...पिछली गणेश-पूजा के दौरान...हम सोसायटी में फंड जमा करने के लिए साथ में जाते थे..... हम सभी सृष्टी के घर पर जमा होते...और बहुत सारी मस्ती होती...फंड जमा करने में कितना मज़ा है...ये मुझे इस साल पता चला....अब तक चंदा देने से मना करने के बहाने पता थे....लेकिन इस साल पैसे जमा करने का गुर सीखा...

कुछ
ऐसे भी लोग हुए जिनसे पूरे परिवार की जान-पहचान बनी....जैसे की हमारे पडोसी....इनके दोनों बच्चे मेरे स्टुडेंट थे.....अदिति और आदित्य....उनकी मम्मी का व्यवहार बहुत ही अच्छा था...हमारे पुणे छोड़ने से ठीक पहले...इन्होने हमारी काफी मदद की....मेरी मम्मी के साथ भी इनकी अच्छी जमती थी....

यादें तो और भी है......बस ख़ुशी इस बात की है कि इस बार मुझे इन यादों को संजोने का समय मिला...........