Tuesday, September 20, 2011

मिलन : हमारा-तुम्हारा

कुछ दिनों पहले ही मुझे अपनी एक पुरानी सहेली नेट पर मिली....और उससे एक दूसरी सहेली का नंबर मिला और उससे दूसरी का...बस इस तरह मुझे अपनी सभी सहेलियों के नम्बर मिले और उनके बारे में भी पता चला...मेरी उनसे अक्सर बातें होने लगीं और हम फिर से एक दूसरे से जुड़ गए....कुछ हफ़्तों पहले मुझे किसी काम से उस शहर के पास जाने का मौका मिला..जहाँ मेरी पढाई हुई थी और मेरी सहेलियां रहती हैं...पर जब प्रोग्राम बना तब हमें उसके पास के शहर से दूसरी ओर जाना था...सो मुझे ख़ुशी तो थी की मैं अपनी सहेलियों के पास तक जा सकुंगी लेकिन उनसे नहीं मिल पाऊँगी इस बात का अफ़सोस भी था...जब हम रायपुर पहुंचे तो पाता चला कि भारी बारिश की वजह से सभी रास्ते बंद हैं इसलिए हमें रायपुर में ही रुकना होगा...सो इस बारिश की बदौलत ही सही हमने भिलाई जाकर अपने दोस्तों से मिलने का फ़ैसला किया...

जब से अपनी सहेलियों का नम्बर और उनके बारे में पाता चला तब से ही उनसे मिलने का मन हो रहा था...लेकिन जब उनसे मिलने जा रही थी तो एक अजीब सा विचार था कि पता नहीं ११ साल बाद अब मेरी सहेलियां कैसी होंगी?...क्या वो अब भी पहले जैसी ही होंगी?....ज़रा भी बदली नहीं होंगी...?...क्या वो मुझसे मिलकर खुश होंगी..? और भी न जाने क्या-क्या...मैंने अपनी एक सहेली को स्टेशन आने के लिए कहा...मैं उसके साथ बाकि सहेलियों से मिलने जाने वाली थी...स्टेशन में पहुँचते ही मैंने उसे फ़ोन किया...वो वहां पहुँच चुकी थी...उससे मिलते ही सारे डर मन से निकल गए...वो बिलकुल उसी तरह मिली जैसे हम स्कूल में मिला करते थे...हमने ढेर सारी बातें की...बाकि सभी सहेलियों को कॉल किया...वो सभी अपने काम छोड़कर मुझसे मिलने दौड़ी चली आईं....सभी बहुत प्यार से मिलीं....हम सभी बिलकुल उसी तरह बातों में लग गए जैसे हम स्कूल के दिनों में किया करते थे...

उन ३ घंटों में हम सभी ने एक बार फिर से अपने स्कूल के दिनों को जी लिया...मुझे आश्चर्य तो हुआ और साथ ही साथ ख़ुशी भी की..मेरी सहेलियां अब भी उतनी ही प्यारी और भोली हैं...बिलकुल वैसी ही हैं जैसा मैं उन्हें छोड़ आई थी...उस दिन मुझे एक बात का अहसास हुआ कि वक्त बहुत कुछ बदल सकता है....पर मेरी सहेलियों पर उसका कोई जोर नहीं चलता...मैंने अपने इसी ब्लॉग में एक बार लिखा था कि ये रेल की पटरियां हमें हमेशा एक दूसरे से दूर कर दिया करती थीं...और ११ साल पहले उसने साजिश करके हमें बहुत दूर कर दिया...लेकिन मुझे आज समझ आया कि उस वक्त भी जब मैं पटरियों को पार करके जाती थी तो अपनी सहेलियों से मिल पाती थी...और अब ११ साल बाद भी मैंने पटरियों को पार करके अपनी सहेलियों को पा लिया...

अपनी सहेलियों से मिलकर अब ज़िन्दगी की एक बड़ी ख़ुशी है....मेरी कहानी में....


Friday, May 20, 2011

उलझे रास्तों का नया सफ़र

अभी कुछ दिनों पहले अपने हाथ के कॉर्न के लिए होम्योपथिक डॉक्टर से मिली.....ये हॉस्पिटल विले पार्ले(मुंबई)में है और वहाँ की खास बात ये है कि वो आपकी बीमारी का इलाज करने तक ही मतलब नहीं रखते...वो पहले आपके नेचर को जानते हैं...कुछ सवालों से या फिर वो आपसे ही कहते हैं कि आप अपने बारे में कुछ बताइए...यही सब मेरे साथ भी किया गया....अपने बारे में काफी कुछ मैंने उन्हें बताया...जो शायद मैंने किसी से अब तक कहा भी नहीं था....उसके बाद डॉक्टर ने मेरे सामने कुछ नए सवाल रखे,जो थे तो मेरी ही ज़िन्दगी से जुड़े लेकिन कभी मेरे सामने आये नहीं थे.....उनके इन सवालों का साइड इफैक्ट ये हुआ कि मैं दिन भर तो उनके जवाब की तलाश में अपने दिमाग को उलझाती ही रही साथ ही मेरी रातों की नींद भी इन जवाबों को ढूंढने में खो गयीं....इस तरह से कुछ दिन परेशान रहने के बाद कुछ जवाब सामने आये...जिन्होंने मेरी उलझनों को कम तो किया...लेकिन अपने साथ कुछ सवाल भी ले आये...ये सवालों और जवाबों का रिश्ता ही कुछ ऐसा है...खुद तो साथ में रहते हैं, लेकिन इंसान को दुनिया से अलग कर देते हैं....बस यही हाल मेरा भी था...फिर डॉक्टर से मिली....उसे मेरे जवाबों से कुछ अच्छा लगा....वो एक मेडिकल कॉलेज है तो हमेशा वहां सिर्फ डॉक्टर ही नहीं स्टुडेंट भी मौजूद होते हैं अपनी नोटबुक के साथ....स्टुडेंट्स तो काफी इंटरेस्ट लेते हैं मुझ पर...शायद कभी ऐसा कोई पेशेंट मिला ही नहीं होगा उन्हें...

डॉक्टर भी कहाँ मानने वाले थे...जिंदगी के कुछ और पन्ने उनके सामने रखी और उन्होंने बदले में मेरे सामने कुछ नए सवाल रख दिए,इस बार सवालों का जवाब नहीं ढूँढना था....क्यूंकि जवाब मेरे पास ही थे,मैं सही रास्ता जानते हुए भी उस पर चल नहीं पा रही थी...और डॉक्टर का यही कहना था कि "आपने अपने बीते हुए समय से खुद को कुछ इस तरह से बाँध रखा है कि आगे ही नहीं बढ़ पा रही....वहाँ आपने एक हुक फंसा रखा है...बस उसको निकलकर आगे बढ़ो...पानी की तरह खुद को बहने दो...पानी कभी एक आकार में बंधा नहीं होता...और रुका हुआ पानी भी कभी साफ़ नहीं रहता...बस जैसा दिल करता है वैसा ही करो...और आप आज़ाद हो जाओगे...उसने कहा..."अब फैसला आपको करना है कि आप किस तरह से जीना चाहते हैं...अपने बीते हुए कल की तरह या एक आज़ाद पंछी की तरह..." अब बस उसी हुक की तलाश में थी....मिल तो गया पर उसमे जंग लगी हुई है...खोलने के लिए मेहनत लगानी होगी...मेहनत लगा तो रही हूँ..पर कभी-कभी थक कर बिलकुल टूट जाती हूँ...इसी तरह कुछ उलझी हुई सी एक बार और डॉक्टर से मिल आई....एक नयी बात उनके सामने रखी जो कोई जवाब नहीं बल्कि एक सवाल ही था....लेकिन उसने उसी सवाल को कुछ बड़ा करके मेरे ही सामने रख दिया....सवाल के दो जवाब हैं और मुझे एक चुनना है....कौन सा जवाब सही है और कौन सा ग़लत..?...आज सही लगने वाला जवाब कल ग़लत भी हो सकता है और ग़लत लगने वाला जवाब सही....

अब मेरा दिमाग कुछ ऐसा उलझा है कि मैं बस उसे ही पढ़ रही हूँ और कुछ भी नहीं..सबके साथ हूँ पर उनके साथ नहीं हूँ...सिर्फ अपने साथ हूँ...और कुछ यूँ उलझी हुई हूँ कि....पता नहीं रास्ता कहाँ मिलेगा....लेकिन कुछ भी हो मैं इस बार ये खोज नहीं रोकूंगी...मेरी जिंदगी का ये सबसे बड़ा सफ़र है...और मुझे इस पर सभी रास्ते खुद ही खोजने हैं...इस अनोखे सफ़र की शुरुवात हो चुकी है...मेरी कहानी में