Wednesday, March 3, 2010

यादों से होली

होली...........रंगों से भरा त्यौहार.....जिसमे किसी भी तबके में कोई अंतर नहीं होता.........हर एक बस रंगों से सराबोर होता है....लेकिन कोई-कोई अपने दोस्तों से दूर होकर केवल दूसरों को रंगों से खेलते हुए और खुशियाँ मानते हुए देखता है,कभी खुश होता है...तो कभी अपने दोस्तों को याद करके उदास.........और ये लिखते हुए थोडा बुरा लग रहा है...लेकिन इस होली मेरा यही हाल रहा.........होली पर कई पकवान बनाये....लेकिन रंग खेलने का कोई मौका नहीं मिला...घर पर गुलाल का टीका लगाया...और खिड़की से दूसरों को एक-दूसरे के पीछे रंग लेकर दौड़ते देखती रही....मन की होली न खेल पाने की खीज,चिडचिडाहट का रूप ले रही थी.....

कुछ देर खुद को दूसरे कामों में लगाया.....फिर पास से गाने की आवाज़ आने लगी और मुझे पिछले साल की होली की याद दिला गयी..........वैसे मुझे बचपन से होली ख़ास पसंद नहीं रही है.....मैं सिर्फ अपनी एक सहेली के साथ होली खेला करती थी...जो की रंग की जगह गुनगुना पानी फेंका करती थी.....लेकिन पिछले साल कई सहेलियां बनी...नयी सोसाइटी में होली पहली बार मनाई जा रही थी...छोटी-सी होली बनाकर जलाई गयी और रेन डांस का थीम रखा गया...हम सभी सहेलियों ने काफी मस्ती की और बहुत मज़ा आया था....कई सालों के बाद मैंने होली खेली थी...और हमें बहुत अच्छा लगा था.....लेकिन इस होली में मैं अपनी सहेलियों से दूर हो चुकी हूँ सो होली भी सुखी गयी.............

वैसे यहाँ भी होली जलाई गयी...एक बात अजीब लगी कि यहाँ कदम-कदम पर होली जलाई जा रही थी....हमारी बिल्डिंग के पास ही ३ होलियाँ जली...और आसपास जितनी भी सोसायटी हैं,सभी में एक-एक होली जलाई गयी.....इस तरह से हमेशा ग्रीन मुंबई के बारे में सोचने वाले मुंबई वासियों ने एक रात में ही मुंबई की वायु को कई गुना ज्यादा प्रदूषित कर दिया....और इस तरह से पास-पास बनी कई होलियों ने ये भी बताया की यहाँ लोगों के दिलों में भी कितनी दूरियां हैं...