बचपन से ही जब मुझे घर पर छोड़ कर दोनों भाई स्कूल जाया करते थे....मुझे बहुत बुरा लगता था और मैं बस इंतज़ार किया करती थी....न सिर्फ उनके आने का बल्कि जल्दी से बड़ी होकर अपने स्कूल जाने का भी....और जब वो दिन आया....मेरी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था.......मैंने कई बच्चों को रोते हुए स्कूल जाते देखा है....लेकिन मैं स्कूल जाने के लिए रोया करती थी....क्यूंकि तेज़ बारिश में कई बार रिक्शेवाले भइया नहीं आया करते थे....और घर पर इतनी दूर तक जाने के लिए साधन नहीं होता था....मुझे वाकई स्कूल बहुत पसंद था....मुझे छुट्टियां बिलकुल भी पसंद नहीं आती थी....हमारे स्कूल में दीपावली की छुट्टियां पूरे १ महीने की लगती थीं.....सभी इस बात से काफी खुश रहा करते थे....मुझे भी थोड़ी ख़ुशी होती थी कि त्यौहार अच्छी तरह मनाएंगे....लेकिन दुःख भी रहता था कि अब सहेलियों से महीने भर मिलने नहीं मिलेगा....इसका एक कारण था...हमारा स्कूल स्टील प्लांट का था....सो मेरी अधिकाँश सहेलियां रेलवे क्रॉसिंग के पार ही रहा करती थीं...जबकि हम क्रॉसिंग के इस पार रहा करते थे.....इसलिए उनसे केवल स्कूल में ही मिल पाती थी....
वैसे तो मुझे हमेशा ही उनका ख्याल रहता है....लेकिन कल मुझे उनकी बड़ी याद आ रही थी....जब हम भिलाई छोड़कर आये...तब मेरे पास अपनी कुछ सहेलियों का पता तो था....लेकिन नंबर नहीं...इस लिए अब मेरे पास अपनी स्कूल की यादों के अलावा कुछ नहीं है......पहले भी रेल की पटरियां हमें रोज़ बाँटने की साजिश किया करती थीं...लेकिन हमने उन्हें कभी सफल नहीं होने दिया....सो उन्होंने ११ साल पहले ऐसी साजिश की....कि हम आज तक नहीं मिल पाए....मुझे पूरा विश्वास है...हम पटरियों की इस साजिश को भी जल्द ही नाकाम करेंगे...
किसी भी साजिश की कोई जगह नहीं..... मेरी कहानी में.....
Friday, June 25, 2010
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