Friday, April 9, 2010

स्पोर्ट्स-डे की वो मार्चपास्ट

अपनी जीवन यात्रा लिखते-लिखते अचानक अतीत से वर्तमान में चली आई थी.....इससे बीच के कुछ वर्ष पीछे छूट गए...अब वो बार-बार मुझसे अपना स्थान मांग रहे हैं...कहते हैं," हमारे बिना तुम्हारी जीवन-यात्रा कैसे पूरी हो सकती है...?"......मुझे इनकी याद तो थी...लेकिन एक बार जब कोई अपने अतीत से वर्तमान में आ जाता है तो उसे वापस अतीत में जाना मुश्किल लगता है.........अगर बचपन कि बात छोड़ें..तो अधिकाँश लोगों को अपने अतीत से कोई खास लगाव नहीं होता.....लेकिन मैं उन अधिकाँश लोगों में से नहीं हूँ.....मुझे अपने अच्छी और बुरी सारी यादें प्रिय है....सो मैंने फिर से अपने अतीत को अपने यादों के पन्नों में समेटने का इरादा किया है....हो सकता है...उन यादों में जीते हुए कुछ ऐसी बातें भी याद आ जाएँ जो मेरे स्मृति पटल पर धुंधली हो चुकी हों........

स्कूल के बारे में तो जितना लिखूं उतना कम लगता है....स्कूल का हर दिन मेरे मन में अंकित है....आज स्कूल का 'स्पोर्ट्स डे' याद आ रहा है...करीब महीने भर पहले से तैयारी शुरू रहती थी....सारी क्लास को दौड़ाया जाता था...और उनमे से जितने वाली लड़कियों को एक साथ दौड़ाते थे...इस तरह कुछ १० लड़कियों को स्पोर्ट्स डे की रेस के लिए चुना जाता था......मुझे स्पोर्ट्स में कोई ख़ास दिलचस्पी तो नहीं थी...लेकिन फिर भी सहेलियों के साथ ग्राउंड में जाकर तैयारियां देखती और अगर मदद की ज़रूरत हो तो जरूर आगे रहतीं...हम कभी-कभी यूँ ही स्पोर्ट्स में पार्ट भी ले लेती....

एक बार स्पोर्ट्स डे की तैयारियों को देखने के लिए ही हमारा ग्रुप ग्राउंड में गया......मार्चपास्ट हो रहा था...एक लड़की कम हो रही थी....हमारी हिंदी टीचर ने मुझे खींचकर उस जगह पर लगा दिया...मैंने मैडम से कहा कि मुझे मार्चपास्ट नहीं आता....तो उन्होंने कहा.."...तो सीख लो....तुमको इस बार मार्चपास्ट करना है..."अब मैडम को तो कुछ बोल नहीं सकती थी...सो प्रेक्टिस में लग गयी....दूर खड़ी सहेलियां मुझे देखकर मज़े लेती रहीं॥

मार्चपास्ट....कोई आसान काम नहीं था...अब तक खड़े-खड़े देखते थे ,तो लगता था...बस हाँथ हिलाते हुए आगे बढ़ना है..और क्या...?.........सोचने और करने में क्या फर्क है ये उस दिन जाना....कभी दोनों हाँथ एक साथ आगे-पीछे होने लगते,कभी बाकियों से हाँथ-पैर का तालमेल नहीं मिलता और हाँथ टकराता....आखिरकार २ दिन मेहनत करके मार्चपास्ट की अ,ब,स तो आ गयी...पर २ दिन में परीक्षा भी देनी थी...

स्पोर्ट्स-डे के दिन आखिरी प्रेक्टिस थी....उस प्रेक्टिस के दौरान थोड़ी गलती हो गयी और दीदी ने मार्चपास्ट करने से मना कर दिया.....२ दिन पहले तक तो मैं भी यही चाहती थी..लेकिन जब मार्चपास्ट से निकाला गया...तो बहुत बुरा लगा...अगर कोई जी-जान से तैयारी करके आये और उसे परीक्षा ही देने न मिले तो वो क्या करे...?..वो खुद को फेल समझे या पास...?.....उसे तो ये जानने का मौका ही नहीं मिला॥?..हम इंसान भी अजीब होते हैं...पहले तो किसी काम को बिना मन के दूसरों के दबाव में करते हैं...लेकिन जब उस काम को करने से मना कर दिया जाये...तो उसे न कर पाने का दबाव महसूस करते हैं..


सच कहूँ तो....मुझे बहुत बुरा लगा लेकिन मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और अपनी सहेलियों के पास चली गयी...मेरी बात सुनकर और उतरी सूरत देखकर....वो मुझे लेकर दीदी के पास गयी और उन्हें बताया कि मैं केवल २ दिनों से ही प्रेक्टिस कर रही हूँ...और मैडम के कहने पर मुझे ये करना पड़ा....तब दीदी ने मुझे आगे से ध्यान रखने के लिए कहकर वापस ले लिया....

उस दिन की मार्चपास्ट बहुत अच्छी हुई....उस साल मैंने व्हा- ड्रेस में मार्चपास्ट किया...अगले साल स्काउट के ग्रुप में मार्चपास्ट किया..और उसके अगले साल एन सी सी के ग्रुप में मार्चपास्ट किया......अगर उस दिन मैडम मुझे मार्चपास्ट के लिए खड़े न करतीं या मेरी सहेलियां दीदी से बात न करती या दीदी मुझे वापस न लेतीं,तो शायद मैं मार्चपास्ट को चलते हुए हाँथ हिलाना ही समझती...और कभी हांथों और पैरों के तालमेल को नहीं जान पाती.......मैं आज उन सभी का धन्यवाद करती हूँ...

स्पोर्ट्स-डे की उस मार्चपास्ट से जुडी ये छोटी सी याद भी एक बड़ा स्थान रखती है....मेरी कहानी में........