Monday, November 23, 2009

सुनहरी रेत का.घरौंदा

बचपन में रेत के घरौंदे तो हम सभी ने बनायें हैं ...वो सुनहरी..गीली रेत का गुम्बदनुमा घर बनाकर उसके भीतर हाथों से सुरंगें बनाना.....मैं और मेरी सहेली भी यूँ ही खेला करते थे...ये सुरंगें जब पूरी हो जातीं और दोनों के हांथ मिल जाते तो.......हमारी खुशी का कोई ठिकाना ही रहता था....किसी के हांथों से ये सुरंग बिखरती तो...उस पर रेत से ही वार होता...........कई-कई बार माँ से डांट पड़ती...."रेत में मत खेला करो.....पूरा सर रेत से भरा है.....तुम लोग घरौंदे रेत में बनाते हो या सर पर..."

इन रेत के घरौंदों की याद तो हमेशा ही नवरात्रि में ताज़ा हो जाती है...जब ज्वार बोने के लिए रेत लायी जाती है....सच कहूँ ,तो किसी न किसी तरह साल में एक ब़ार...यूँ ही रेत का घरौंदा बनाने का मौका मिल जाता है.....हर साल की तरह इस साल भी नवरात्रि में रेत लाई गई...घरौंदे बनाने की चाह फिर से जागी...भागकर रेत का थैला हाँथ में लिया....लेकिन ये क्या हुआ...मेरी सुनहरी रेत को...?....ये काली कब से हो गई....?............उस सुनहरी सी रेत का सुनहरा रंग कहीं खो गया था.....वो तो ऐसी लग रही थी;जैसे बरसों से बीमार हो और अब कमजोरी आ गई हो......और इस कमजोरी ने उसका अल्हड सुनहरा रंग उससे छीन लिया हो....जिसके कारण वो बेरंग...बेजान-सी हो गई है............

इस साल घरौंदा नही बनाया मैंने...जो परेशान हो उससे खेलकर उसे और परेशान तो नही करना चाहिए ?...........नौ दिनों तक वो घर पर रही...और फिर इसी आशा के साथ उसे विसर्जित किया...कि शायद उसे अपना खोया हुआ रूप वापस मिल जाए...............बाकी जगहों के बारे में तो पता नही लेकिन यहाँ तो ऐसी ही रेत मिलती है.....हो सकता है ये रेत का एक अलग रूप हो....या प्रदूषण का प्रकोप.....लेकिन मेरी तो यही इच्छा है की अब की नवरात्रि में,मैं अपनी सुनहरी सखी से फिर से मिल पाऊँ.......

8 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत ही लाजवाब रचना लगी , आपने बचपन की याद दिला दी ।

विनोद पाराशर said...

नेहा जी,आज सब-कुछ बदल गया हॆ चाहे सुनहरी रेत का घरॊंदा हो,या घर.घर भी घर कहा रहे मकान होकर रह गये हॆं.ईट ऒर पत्थर के मकान जहां भावनाओं की कोई कद्र ही नहीं हॆ.

विनोद कुमार पांडेय said...

एक अलग सा संस्मरण पर बहुत अच्छा लगा..

Udan Tashtari said...

भावपूर्ण संस्मरण!

निर्मला कपिला said...

बहुत भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामनायें

Neha said...

aap sabhi ka bahut dhanyawaad.....aapki sarahnaon se aage badhne ki prerna milti hai.....

manu said...

बहुत अच्छा लिखा है बच्चे...

हमें अपने दिन याद आ गए..

VISHAL YADAV said...

Kaafi aacha writeup hai ......vo bachpan k din kitne acche they .......Keep it up...