Thursday, August 27, 2009

पापाजी,मान जाइये

पापाजी....बचपन में कितनी ही बार इनकी गोद में खेली...वे मुझे कई नामों से बुलाते...गुडिया,नन्ही राजकुमारी...और भी जाने क्या-क्या...?...पापाजी मुझे भाइयों से ज्यादा प्यार करते....पहली बार उनके साथ ही स्कूल गई...मुझे याद है..एक दिन मैंने उनके साथ सामान सप्लाई करने के लिए जाने की जिद की थी और वे मुझे ले कर भी गए थे...उन्हें मेरी वजह से परेशानी भी हुई थी...वो हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते...जब पहली बार मैंने डर से गाना नही गया था...तब भी उन्होंने मुझे बहुत समझाया था...और मैं बाद में गा सकी...

दिन बीतते गए...जैसे-जैस बचपन दूर जाता गया पापाजी से भी दूरी बढती गई...उनसे उतनी खुलकर बातें नही होतीं थी,जितनी बचपन में हुआ करतीं थीं...पापाजी के साथ पता नही कैसे विचारों का मतभेद सामने आने लगा...उन्हें अक्सर वे बातें अच्छी नही लगतीं थीं जो मैं करती या करना चाहती...मैं कई बार वो काम नही करती जो उन्हें पसंद नही होते.....बीच में एक ऐसा वक्त आया जब मुझे लगने लगा कि पापाजी किसी भी काम को करने की इजाजत नही देंगे...मैं पहले ही उस काम के लिए मना कर देती...उनसे पूछे बगैर..पता नही शायद वो मुझे उस काम की इजाजत दे भी देते,लेकिन मैंने कोशिश ही नही की....वैसे उन्होंने मुझे कई बार ऐसे कामों की इजाजत भी दी..जिनके लिए मैंने "न"ही सोच लिया था..जैसे जींस पहनने की इजाज़त,डांडिया के लिए इजाज़त....

इस तरह से मैं उनसे कटती सी गई....और कुछ सालों बाद मेरी इस ग़लतफ़हमी ने उग्र रूप लिया...और मैं उनकी बातों का विरोध करने लगी...वैसे मैं वो काम करती नही थी...लेकिन उनसे बहस जरूर करने लगी थी...हर बार बेवजह की बहस करने के बाद अपने अन्दर एक ग्लानी जरूर महसूस करती थी...लेकिन गलती ये ही रही की उनसे कभी माफ़ी नही मांगी...बहस के बाद कई दिनों तक आपसी बातें कम होतीं....फ़िर सब कुछ सामान्य हो जाता...लेकिन महीने में दो-तीन बार ऐसा हो जाता था.....

कुछ दिनों में मेरी बदतमीजीयां बढ़ने लगीं...कई बार तो ऐसा होता की मेरा जवाब ही"नही"से शुरू होता...इस वजह से मैंने जल्द ही पापाजी को अपने ख़िलाफ़ कर लिया...मुझे तो इन बातों का एहसास ही नही होता..अगर मेरे भाई ने मेरा ध्यान इस और न दिलाया होता...और जब मुझे अपनी गलतियों का एहसास हुआ...तो मैं अपने आपको इस काबिल भी नही पाई कि मैं उनसे माफ़ी मांग सकूं...जानती हूँ की मुझे फ़िर भी माफ़ी मांगनी चाहिए थी...लेकिन मैंने यहाँ भी गलती की और उनसे कुछ नही बोली...

मैंने अपने आप में सुधार लाने की सोची..अब ये रास्ता आसान नही था...क्यूंकि मेरी आदत हो चुकी थी जवाब देने की और पापाजी को भी अब मेरी सारी बातें बुरी लगती थी...मैं अब तक अपनी कोशिश में लगीं हूँ...लेकिन मतभेद तो अब भी हैं....अब कई बार अगर मैं जवाब में सही बातें भीं कहतीं हूँ...तो उन्हें बुरी लगतीं हैं...उन्हें ऐसा लगता है कि मैं हर हाल में उनकी बात का विरोध ही करना चाहती हूँ....कई बार तो बहुत बुरा लगता है...वो इस तरह से मुझे ग़लत समझ लेते हैं कि विश्वास ही नही होता..कई बार रोना आ जाता है..लेकिन इसमे उनका कोई दोष भी तो नही है..ये सब मेरा ही किया धरा है...खैर मेरी कोशिश अब भी जारी है...कभी न कभी तो मैं इस बिगड़ी बात को जरूर बना पाऊँगी...

पापाजी से मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूंगी...कि मैं मानती हूँ की अक्सर गलती मेरी ही होती है..लेकिन कभी-कभी आप भी मेरी भावनाओं को समझने की कोशिश जरूर कीजियेगा...

2 comments:

सागर नाहर said...

पापाजी से बस एक बार माफी मांग लीजिये, पापाजी सब कुछ भूल कर अपनी प्यारी बेटी को गले लगा लेंगे।
वैसे भी ये जो पापाजी होते हैं ना, वे खासकर अपनी बेटियों से कभी ज्यादा देर नाराज रह ही नहीं सकते।

अनिल कान्त said...

aapne apne ehsaason aur sachchaiyon ko dil se likha hai...ho sake to maafi maang lena...nahi to ab pahle jaisa vyavhar mat karna...wo bahut jald maan jayenge