Tuesday, May 12, 2009
एक और धन्यवाद
पिछली बार मैंने अपने इतिहास के टीचर के बारे मैं लिखा था और आज मैं अपनी संस्कृत की टीचर के बारे मैं लिखना चाहती हूँ;वैसे ये करीब-करीब एक ही तरह की बात होगी लेकिन फ़िर भी....हम घर में बचपन से ही मंत्रों का जाप किया करते थे और हर रविवार हम यज्ञ करने गायत्री मन्दिर भी जाया करते थे ,सो बचपन से ही संस्कृत के लिए मन में एक चाह थी.जब हम छटवीं में गए तभी संस्कृत एक नए विषय के रूप में सामने आया;बाद में इसकी खूबी के साथ ही इसकी मुश्किलें भी सामने आयीं.एक भी बिंदी या विसर्ग छुट जाए तो सही जवाब भी ग़लत हो जाता है.खैर हमें इसका हल भी मिल गया......हमें संस्कृत पढ़ने के लिए जोगलेकर मैडम का साथ मिल गया.उन्होंने हमें बताया की किस तरह से बड़े-बड़े संस्कृत के शब्दों को संधि करके उनके अर्थ जाना जा सकता है और उनका उच्चारण भी सही किया जा सकता है.आज उनकी वजह से ही मैं आसानी से मंत्रों का उच्चारण कर पाती हूँ...और कुछ दिन पहले ही मैंने गायत्री यज्ञ में परिव्राजकों के साथ मंत्रों का उच्चारण करवाकर यज्ञ करवाया था .आज मैं तहेदिल से अपनी मैडम को धन्यवाद करती हूँ.
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2 comments:
मैं भी जब तक १२ वीं कक्षा में रहा तब तक मुझे संस्कृत से बेहद लगाव था और मेरे अंक भी बहुत अधिक आते रहे ...फिर उसके बाद संस्कृत का साथ छूट गया ...आज आपके लेख ने फिर से एक बार याद दिला दी
dhanyawaad anilji
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