Thursday, April 16, 2009
शिक्षा:ये क्या हुआ?
कल मेरी एक पहचान वाली ने मुझे अपने बेटे की हिन्दी मैं मदद करने के लिए कहा,क्यूंकि उसे हिन्दी नही आती और उसके बेटे की परीक्षा थी ,सो मैंने उसे शाम का समय दिया क्यूंकि मैं उस वक्त खाली होती हूँ.उसे पढ़ते हुए मुझे ये पता चला कि उसे अब तक मात्राओं का ज्ञान नही है ,न ही वो अक्षरों का ठीक से उच्चारण ही कर सकता है.जबकि अब साल खत्म हो चुके हैं और पढ़ाई कितनी आगे निकल चुकी है....और तो और अब एक हफ्ते बाद ही उसकी वार्षिक परीक्षा भी होने वाली है .ऐसे में मैंने तो उसे मात्राओं का ज्ञान करवाया और साथ ही अक्षरों का उच्चारण भी करना सिखाया.उसके जाने के बाद मैंने सोचा कि हमने कैसे ये सब सीखा था?तब याद आई हमारी मैडम कितनी सरलता से हमें अक्षर और मात्राओं का ज्ञान करवा देतीं थी.हाँ...यहाँ हम अपनी माँ को भी नही भूल सकते जो घर पर ही हमें अक्सर और मात्राओं का ज्ञान खेल-खेल में करा दिया करतीं थी.लेकिन आज मुझे कहीं न कहीं अपनी मैडम जैसी मदमों कि कमी खलने लगी है,जिस तरह से उन्होंने हिन्दी को हमारी एक अभिन्न सहेली बना दिया है.....वैसा आज देखने नही मिल रहा ,ऐसा नही है कि आज ऐसे टीचर नही है ....हैं लेकिन उतने नही है...वो इसे एक विषय कि तरह पढ़ते हैं...विषय के प्रति अपनापन जगा देने वाली वो बात कहीं गुम है..ऐसा सिर्फ़ हिन्दी के साथ ही नही बल्कि अन्य विषयों कि बात भी है...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आज कल विद्यार्थियों में भी कुछ लगन का अभाव है.
Post a Comment