Monday, June 1, 2009

जो कह न सकी

माँ....एक ऐसा शब्द जिसे बच्चा सबसे पहले कहता है.मेरी माँ...जिन्हें मैंने हर वक्त अपने साथ पाया....मुश्किल पलों में सहेली के रूप में,जीवन की कठिन राहों में मार्गदर्शक के रूप में,अकेलेपन में सहारे के रूप में....पहली बार मम्मी को छोड़ कर कही गई तो वो था मेरे स्कूल का पहला दिन....उसके बाद रोज़ पाँच घंटों की दूरी रहती थी...रविवार को छोड़ कर।

स्कूल में नई सहेलियां जरूर बनीं,लेकिन मम्मी ही मेरी बेस्ट फ्रेंड रहीं;अपनी हर बातें मैंने उनके सिवा आज तक अपनी किसी फ्रेंड से नही बांटी...घर वापस आकर स्कूल की छोटी से छोटी बात उन्हें बताती थी...जैसे की उन्हें भी अपनी जानकारियों से अपडेट करना चाहती थी,इसी वजह से जब भी किसी सहेली से कोई बात हो जाया करती तो मम्मी से वो बात कहने में मुझे कभी भूमिका नही बनानी पड़ती थी....क्यूंकि वो सभी को मेरी बातों से जानते थे।

कभी कोई सवाल हल न हो रहा हो या किसी प्रश्न का उत्तर नही आ रहा हो...हल मम्मी के पास मिलता है.....मेरे विषय अलग होने के बाद भी मैं केवल सवाल पूछने से पहले नियमों को बता कर सवाल पूछती तो कोई न कोई हल जरूर मिल जाता नही तो कोई ऐसा सुझाव मिलता जिससे सवाल हल करने में सुविधा होती.एक निश्चित उम्र में जो बातें मुझे पता होनी चाहिए थीं,बड़ी ही सहजता से पता चलती गयीं....आज सोचती हूँ तो समझ आता है की परिस्थितियों को ही इतना सहज बनाया गया था की ये सभी बातें भी सहजता से समझ आतीं चलीं गई.

स्कूल के दिनों के बाद कई बार मम्मी से कई-कई महीनों अलग रहना पड़ा...फ़ोन पर भी बात नही होती थी,फ़िर भी वो साथ ही लगतीं थी.मुझे याद है जब मैं १२ वी की परीक्षा के लिए मामाजी के घर गई थी.....मैंने मम्मी के बारे में एक बुरा सपना देखा.....सुबह आँख खुली तो मैं रोते-रोते ही उठी.....सपना भी बहुत सुबह का था और मैंने सुन रखा था कि सुबह का सपना सच होता है....रो-रोकर मेरा हाल बुरा हो गया था.वैसे तो मैं बचपन से रोने के लिए मशहूर थी....खासकर मामाजी जब घर वापस आते तब मेरे नाम की एक धुन सीटी से बजाते थे और वो धुन सुनते ही मेरा रोना सुरु हो जाता था...इस वजह से मामाजी को नानीजी से डांट भी खानी पड़ती थी और वो कहते-"मैंने तो सिर्फ़ सीटी बजाई है".........लेकिन उस दिन का मेरा रोना देखकर सभी बहुत परेशान हो गए,काफी देर सभी ने मुझे समझाया तब जाकर मेरा रोना बंद हुआ....वैसे इस बात को काफ़ी दिनों तक आपस में सब ने सुनाया.वैसे ही एक बार जब मेरे पेपर के बीच में मम्मी मुझसे मिलने आए और जब वापस जाने लगे तो अचानक लगा की बाकि सारे पेपर छोड़ कर मम्मी के साथ चली जाऊं।

आज सोचती हूँ,तो पाती हूँ की कई बार मैंने मम्मी का दिल दुखाया है....कई बार बिना कुछ सोचे समझे जवाब दे दिया...कई बार अनजाने में मुह से कोई ऐसी बात निकल गई जो उन्हें तकलीफ दे गई और कुछ पलों बाद मुझे भी...मेरी गलती ये रही की मैंने इसके लिए भगवान् से तो माफ़ी मांगी लेकिन अपनी माँ से नही.मुझे पता है;इसके माँ तो माफ़ कर देंगी...लेकिन भगवान् नही!

कुछ महीनों पहले मम्मी की तबियत ख़राब हो गई थी....उन्हें हॉस्पिटल ले जाना पड़ा.....हॉस्पिटल पहुँचने पर उन्हें स्ट्रेचर पर सुलाया गया(उन्हें बहुत चक्कर आ रहे थे) इस हालत में मैंने अपनी माँ को नही पहले कभी नही देखा था....उस वक्त उन्हें देखकर कैसा लगा ये शायद बता नही पाऊँगी,बस इतना बता सकती हूँ कि,मुझे अपने आंसू छिपाने की नाकाम कोशिश करनी पड़ी.....मम्मी पाँच दिन बाद घर आए,लेकिन हॉस्पिटल में भी उन्हें हमेशा घर की चिंता रहती थी....सब ठीक से खाना खा रहे है की नही,काम का ज्यादा बोझ मत लेना,तुम लोग को फालतू में परेशान कर रही हूँ,वगेरह,वगेरह.मुझे भी घर पर सारे दिन बेचैनी रहती थी की कब रात हो और मैं मम्मी के पास जाऊँ।

आज तक मैंने बहुत गलतियां की हैं.....जिनके लिए मुझे बिना कुछ कहे माफ़ी मिली है.....मेरी माँ तो सबसे अच्छी माँ हैं.....पता नही मैं कैसी बेटी हूँ?इतना तो पता है की मैं एक परफेक्ट बेटी नही हूँ,जो अपनी माँ को हमेशा खुश रखे,उनसे कभी कोई बुरी बात न कहे,अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगे....लेकिन हाँ,कहीं न कहीं मैं इस सुधार के रस्ते पर चलना तो चाह रही हूँ और मुझे आज भी जरूरत है एक मार्गदर्शक की.....अपनी माँ की।

इस पोस्ट के जरिये अपनी माँ को वो सभी बातें कहना चाहती हूँ,जो कभी उनसे रूबरू नही कर पाई.मेरी सभी गलतियों के लिए मुझे माफ़ करना....माँ.

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

नेहा जी,माँ सदा ही बच्चो को माफ कर देती है यही तो माँ की महानता है।
(आज सोचती हूँ,तो पति हूँ की कई ...)शायद आप पाती लिखना चाहती थी.....कृपया सुधार लें।

alka mishra said...

माँ तो बिना माफी मांगे ही माफ़ कर देती है

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा लिखा है आपने । भाव और विचार के स्तर पर अभिव्यक्ति प्रखर है ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल हो जाने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी । समय हो तो पढ़ें और अपना कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

अन्तर सोहिल said...

"माँ तो माफ़ कर देंगी"
हां सच है

Me said...

Neha,

Isey meri woman's instinct keh lo yaa sensitivity, Main yeh post padkey senti ho gayi... and I realise ki mujhey bhi maa ko kitna sab kehna hain jo mainey kabhi nahi kaha...

Sach mein... bhagwaan ne khud se upar Maa ko banaaya hain...

Aur atleast yeh post padkar toh main yeh keh sakti hun... ki tumhari maa bhi tumhey paakar bahut bahut khush hain... coz tum bahut honest aur mann se sachchi ho... :)