पापाजी....बचपन में कितनी ही बार इनकी गोद में खेली...वे मुझे कई नामों से बुलाते...गुडिया,नन्ही राजकुमारी...और भी जाने क्या-क्या...?...पापाजी मुझे भाइयों से ज्यादा प्यार करते....पहली बार उनके साथ ही स्कूल गई...मुझे याद है..एक दिन मैंने उनके साथ सामान सप्लाई करने के लिए जाने की जिद की थी और वे मुझे ले कर भी गए थे...उन्हें मेरी वजह से परेशानी भी हुई थी...वो हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते...जब पहली बार मैंने डर से गाना नही गया था...तब भी उन्होंने मुझे बहुत समझाया था...और मैं बाद में गा सकी...
दिन बीतते गए...जैसे-जैस बचपन दूर जाता गया पापाजी से भी दूरी बढती गई...उनसे उतनी खुलकर बातें नही होतीं थी,जितनी बचपन में हुआ करतीं थीं...पापाजी के साथ पता नही कैसे विचारों का मतभेद सामने आने लगा...उन्हें अक्सर वे बातें अच्छी नही लगतीं थीं जो मैं करती या करना चाहती...मैं कई बार वो काम नही करती जो उन्हें पसंद नही होते.....बीच में एक ऐसा वक्त आया जब मुझे लगने लगा कि पापाजी किसी भी काम को करने की इजाजत नही देंगे...मैं पहले ही उस काम के लिए मना कर देती...उनसे पूछे बगैर..पता नही शायद वो मुझे उस काम की इजाजत दे भी देते,लेकिन मैंने कोशिश ही नही की....वैसे उन्होंने मुझे कई बार ऐसे कामों की इजाजत भी दी..जिनके लिए मैंने "न"ही सोच लिया था..जैसे जींस पहनने की इजाज़त,डांडिया के लिए इजाज़त....
इस तरह से मैं उनसे कटती सी गई....और कुछ सालों बाद मेरी इस ग़लतफ़हमी ने उग्र रूप लिया...और मैं उनकी बातों का विरोध करने लगी...वैसे मैं वो काम करती नही थी...लेकिन उनसे बहस जरूर करने लगी थी...हर बार बेवजह की बहस करने के बाद अपने अन्दर एक ग्लानी जरूर महसूस करती थी...लेकिन गलती ये ही रही की उनसे कभी माफ़ी नही मांगी...बहस के बाद कई दिनों तक आपसी बातें कम होतीं....फ़िर सब कुछ सामान्य हो जाता...लेकिन महीने में दो-तीन बार ऐसा हो जाता था.....
कुछ दिनों में मेरी बदतमीजीयां बढ़ने लगीं...कई बार तो ऐसा होता की मेरा जवाब ही"नही"से शुरू होता...इस वजह से मैंने जल्द ही पापाजी को अपने ख़िलाफ़ कर लिया...मुझे तो इन बातों का एहसास ही नही होता..अगर मेरे भाई ने मेरा ध्यान इस और न दिलाया होता...और जब मुझे अपनी गलतियों का एहसास हुआ...तो मैं अपने आपको इस काबिल भी नही पाई कि मैं उनसे माफ़ी मांग सकूं...जानती हूँ की मुझे फ़िर भी माफ़ी मांगनी चाहिए थी...लेकिन मैंने यहाँ भी गलती की और उनसे कुछ नही बोली...
मैंने अपने आप में सुधार लाने की सोची..अब ये रास्ता आसान नही था...क्यूंकि मेरी आदत हो चुकी थी जवाब देने की और पापाजी को भी अब मेरी सारी बातें बुरी लगती थी...मैं अब तक अपनी कोशिश में लगीं हूँ...लेकिन मतभेद तो अब भी हैं....अब कई बार अगर मैं जवाब में सही बातें भीं कहतीं हूँ...तो उन्हें बुरी लगतीं हैं...उन्हें ऐसा लगता है कि मैं हर हाल में उनकी बात का विरोध ही करना चाहती हूँ....कई बार तो बहुत बुरा लगता है...वो इस तरह से मुझे ग़लत समझ लेते हैं कि विश्वास ही नही होता..कई बार रोना आ जाता है..लेकिन इसमे उनका कोई दोष भी तो नही है..ये सब मेरा ही किया धरा है...खैर मेरी कोशिश अब भी जारी है...कभी न कभी तो मैं इस बिगड़ी बात को जरूर बना पाऊँगी...
पापाजी से मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूंगी...कि मैं मानती हूँ की अक्सर गलती मेरी ही होती है..लेकिन कभी-कभी आप भी मेरी भावनाओं को समझने की कोशिश जरूर कीजियेगा...
Thursday, August 27, 2009
Sunday, August 16, 2009
स्वतंत्रता दिवस

स्कूल के दिनों में अगस्त महिना शुरू होते ही १५ अगस्त की तैयारियां होने लगतीं थी....मार्चपास्ट,गाने,भाषण आदि में हम सभी व्यस्त रहते...१५ अगस्त के दिन भी सुबह ५ बजे उठकर जल्दी-जल्दी तैयार होकर स्कूल पहुँचकर सबसे आगे खड़े होना...ताकि हम सारे कार्यक्रम ठीक से देख सकें......जैसे ही तिरंगा फहराया जाता...उसमे लिपटे फूल आसपास गिर जाते...और सभी नज़रों ही नज़रों में अपने पसंदीदा फूलों को चुन लेते.....जैसे ही सारे कार्यक्रम खत्म होते..सब अपने पसंदीदा फूलों को उठाने के लिए कूद पड़ते....बाद में सभी को "संतरे के स्वादवाली कैंडी और बिस्किट"मिलते.....आज भी हर २६ जनवरी और १५ अगस्त को वो "संतरा गोली" बहुत याद आती है(वो संतरे के स्वाद की होती थी और गोल होती थी..इसलिए उसे "संतरा गोली"कहा करते थे)...बिस्किट तो मिल जाते हैं,लेकिन वैसी "संतरा गोली"आज तक फ़िर नही मिली...
स्कूल के दिन खत्म होने के बाद तो २६ जनवरी और १५ अगस्त में तिरंगा फहराते देखना भी मुश्किल होने लगा था..लेकिन पिछले कुछ सालों से फ़िर से ये सौभाग्य मिलने लगा है....इस वर्ष मन में एक खटका था कि पता नही "स्वाइन फ्लू"की वजह से ये कार्यक्रम कहीं रद्द न हो जाए...लेकिन लोगों ने "स्वतंत्रता दिवस"पर मानो अपने इस डर से भी आजादी पा ली थी...स्वाइन फ्लू से डरने की बजाय उससे बचाव के तरीके अपनाने की जरूरत है....
इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस सभी के लिए एक स्वतंत्रता लेकर आया...काफ़ी दिनों बाद सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा....यहाँ भी हमने चॉकलेट खाई...... लेकिन मन "संतरा गोली" के स्वाद को नही भुला पाया....कुछ चीजें ऐसी होतीं हैं,जिनका स्थान कोई नही ले सकता...कोई भी ,महंगी से महंगी चॉकलेट भी उस ५० पैसे की "संतरा गोली"के स्वाद की बराबरी नही कर सकती......
Thursday, August 6, 2009
ट्यूशन का भूत
पिछले महीने से मैंने ट्यूशन पढाना शुरू किया....बच्चों के नखरे-बहाने देखकर मजा भी आता है...गुस्सा भी...उन्हें पढाते हुए मुझे भी अपने ट्यूशन के पहले दिन की याद आती है......ये सभी तो फ़िर भी पहले दिन अच्छी तरह से पढने आ गए थे......जब मैं पहले दिन ट्यूशन पढने गई थी....वो दिन तो आज भी नही भूली हूँ...
मेरा अक्षर ज्ञान और प्रारंभिक पढ़ाई तो घर पर ही हुई...मम्मी ने ही मुझे सिखाया...और बाकी कॉमिक्स से सीखी....लेकिन जब मेरे स्कूल में एडमिशन की बात आई तो पता नही क्यूँ?.....दाखिले के लिए जो टेस्ट देना था...उसकी तैयारी के लिए मम्मी-पापाजी ने मुझे ट्यूशन भेजना तय किया...पहले तो मुझे समझ ही नही आया कि अब तक तो मम्मी ही पढाते थे...तो मुझे टेस्ट कि तैयारी के लिए ट्यूशन क्यूँ भेजा जा रहा है....?
पहले दिन मम्मी मुझे छोड़ने गए....मैं तब तक कभी अजनबियों के पास अकेली नही गई थी....मम्मी तो मुझे छोड़कर घर आ गए....ट्यूशन वाली मैडम ने मम्मी को एक घंटे बाद आने को कहा....मम्मी के जाने के बाद उसने मुझे "ऐ टू जेड और अ से ज्ञ" तक लिखने कहा...मैंने कॉपी निकाली..लेकिन इससे पहले की मैं कुछ लिखती मैडम के घर की एक औरत जो की देखने में पागल लग रही थी..मेरे बगल में आकर बैठ गई....मेरी तो डर के मारे हालत ख़राब हो गई....लिखना तो दूर की बात थी मैं तो वहाँ से उसी वक्त भागना चाहती थी....
मैडम मुझे लिखने के लिए बोलती रही और मैं भगवान से मम्मी के जल्दी आने की प्रार्थना करती हुई रोती रही...आखिरकार भगवान ने मेरी सुनी..और मम्मी जरा जल्दी आ गए....मम्मी के आते ही मैडम ने शिकायतों की झड़ी लगा दी..."आप की बेटी को तो कुछ भी नही आता....लिखने के लिए बोली तो बैठकर रो रही है...आप तो बोल रहीं थीं..इसको सारे अक्षर आते हैं,लिख भी लेती है...ये कुछ भी नही जानती..."
उसकी बातों से मम्मी हैरान थे...मुझसे भी पूछा कि मैंने लिखा क्यूँ नही...लेकिन मैंने वहाँ कुछ नही कहा....खैर घर वापस आते समय जब मैंने मम्मी को सारी बात बताई...तो वो हंसने लगीं...और बाद में ये तय हुआ कि मम्मी ही मुझे पढायेंगे....मुझे ट्यूशन नही भेजा जायेगा....
बस ट्यूशन का वो पहला दिन ही मेरे ट्यूशन का आखिरी दिन रहा...उसके बाद से आज तक कभी भी मैं ट्यूशन नही गई...लेकिन वो एक दिन के ट्यूशन का अनुभव मुझसे भुलाए नही भूलता.....
मेरा अक्षर ज्ञान और प्रारंभिक पढ़ाई तो घर पर ही हुई...मम्मी ने ही मुझे सिखाया...और बाकी कॉमिक्स से सीखी....लेकिन जब मेरे स्कूल में एडमिशन की बात आई तो पता नही क्यूँ?.....दाखिले के लिए जो टेस्ट देना था...उसकी तैयारी के लिए मम्मी-पापाजी ने मुझे ट्यूशन भेजना तय किया...पहले तो मुझे समझ ही नही आया कि अब तक तो मम्मी ही पढाते थे...तो मुझे टेस्ट कि तैयारी के लिए ट्यूशन क्यूँ भेजा जा रहा है....?
पहले दिन मम्मी मुझे छोड़ने गए....मैं तब तक कभी अजनबियों के पास अकेली नही गई थी....मम्मी तो मुझे छोड़कर घर आ गए....ट्यूशन वाली मैडम ने मम्मी को एक घंटे बाद आने को कहा....मम्मी के जाने के बाद उसने मुझे "ऐ टू जेड और अ से ज्ञ" तक लिखने कहा...मैंने कॉपी निकाली..लेकिन इससे पहले की मैं कुछ लिखती मैडम के घर की एक औरत जो की देखने में पागल लग रही थी..मेरे बगल में आकर बैठ गई....मेरी तो डर के मारे हालत ख़राब हो गई....लिखना तो दूर की बात थी मैं तो वहाँ से उसी वक्त भागना चाहती थी....
मैडम मुझे लिखने के लिए बोलती रही और मैं भगवान से मम्मी के जल्दी आने की प्रार्थना करती हुई रोती रही...आखिरकार भगवान ने मेरी सुनी..और मम्मी जरा जल्दी आ गए....मम्मी के आते ही मैडम ने शिकायतों की झड़ी लगा दी..."आप की बेटी को तो कुछ भी नही आता....लिखने के लिए बोली तो बैठकर रो रही है...आप तो बोल रहीं थीं..इसको सारे अक्षर आते हैं,लिख भी लेती है...ये कुछ भी नही जानती..."
उसकी बातों से मम्मी हैरान थे...मुझसे भी पूछा कि मैंने लिखा क्यूँ नही...लेकिन मैंने वहाँ कुछ नही कहा....खैर घर वापस आते समय जब मैंने मम्मी को सारी बात बताई...तो वो हंसने लगीं...और बाद में ये तय हुआ कि मम्मी ही मुझे पढायेंगे....मुझे ट्यूशन नही भेजा जायेगा....
बस ट्यूशन का वो पहला दिन ही मेरे ट्यूशन का आखिरी दिन रहा...उसके बाद से आज तक कभी भी मैं ट्यूशन नही गई...लेकिन वो एक दिन के ट्यूशन का अनुभव मुझसे भुलाए नही भूलता.....
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