
स्कूल के दिनों में अगस्त महिना शुरू होते ही १५ अगस्त की तैयारियां होने लगतीं थी....मार्चपास्ट,गाने,भाषण आदि में हम सभी व्यस्त रहते...१५ अगस्त के दिन भी सुबह ५ बजे उठकर जल्दी-जल्दी तैयार होकर स्कूल पहुँचकर सबसे आगे खड़े होना...ताकि हम सारे कार्यक्रम ठीक से देख सकें......जैसे ही तिरंगा फहराया जाता...उसमे लिपटे फूल आसपास गिर जाते...और सभी नज़रों ही नज़रों में अपने पसंदीदा फूलों को चुन लेते.....जैसे ही सारे कार्यक्रम खत्म होते..सब अपने पसंदीदा फूलों को उठाने के लिए कूद पड़ते....बाद में सभी को "संतरे के स्वादवाली कैंडी और बिस्किट"मिलते.....आज भी हर २६ जनवरी और १५ अगस्त को वो "संतरा गोली" बहुत याद आती है(वो संतरे के स्वाद की होती थी और गोल होती थी..इसलिए उसे "संतरा गोली"कहा करते थे)...बिस्किट तो मिल जाते हैं,लेकिन वैसी "संतरा गोली"आज तक फ़िर नही मिली...
स्कूल के दिन खत्म होने के बाद तो २६ जनवरी और १५ अगस्त में तिरंगा फहराते देखना भी मुश्किल होने लगा था..लेकिन पिछले कुछ सालों से फ़िर से ये सौभाग्य मिलने लगा है....इस वर्ष मन में एक खटका था कि पता नही "स्वाइन फ्लू"की वजह से ये कार्यक्रम कहीं रद्द न हो जाए...लेकिन लोगों ने "स्वतंत्रता दिवस"पर मानो अपने इस डर से भी आजादी पा ली थी...स्वाइन फ्लू से डरने की बजाय उससे बचाव के तरीके अपनाने की जरूरत है....
इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस सभी के लिए एक स्वतंत्रता लेकर आया...काफ़ी दिनों बाद सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा....यहाँ भी हमने चॉकलेट खाई...... लेकिन मन "संतरा गोली" के स्वाद को नही भुला पाया....कुछ चीजें ऐसी होतीं हैं,जिनका स्थान कोई नही ले सकता...कोई भी ,महंगी से महंगी चॉकलेट भी उस ५० पैसे की "संतरा गोली"के स्वाद की बराबरी नही कर सकती......