आज अचानक अपने स्कूल का पहला दिन याद आ गया.छोटी होने के कारण कई फायदे तो थे लेकिन नुकसान भी था...मुझे घर पर सारे दिन अपने भाइयों के स्कूल से घर आने का इंतजार करना पड़ता था,इस बोरियत को मिटाने के लिए मम्मी मुझे अक्षर ज्ञान और लिखना सिखाते थे......इसी वजह से मैं स्कूल जाने से पहले ही कॉमिक्स पढने लगी थी या यूँ भी कहा जा सकता है की मैंने कॉमिक्स से ही पढ़ना सीखा.
आखिरकार मेरा स्कूल में दाखिला हुआ...मैंने पहले पहली का वार्षिक परीक्षा का पेपर हल किया,फ़िर दूसरी के दाखिले का....इस तरह मुझे सीधे दूसरी कक्षा में दाखिला मिला.स्कूल हमारे घर से बहुत दूर था....पहले दिन पापाजी मुझे छोड़ने आए और लेने भी.मेरी पहली क्लास टीचर थीं "ठाकुर मैडम",उन्होंने ही मेरी दोस्ती पहले दिन दो लड़कियों.....आयशा और पूनम से करवाई,ये दोनों पढने में बहुत होशियार थीं.
स्कूल का पहला दिन बहुत ही अच्छा रहा...मेरा तो स्कूल जाने का शौक ही पूरा हो गया था,वापस घर आकर मैंने अपनी स्कूल की सारी बातें मम्मी को बताई....स्कूल के पहले दिन से लेकर आज तक ये सिलसिला जारी है.मेरे रोज सारी बातें इस तरह से बताने के कारण मेरे दोनों भाई मुझे कहते-"तू मम्मी को साथ में स्कूल ले जाया कर,तो तुझे रोज़ आकर स्कूल पुराण नही गाना पड़ेगा"....लेकिन मैं नही सुधरी।
एक साल बाद पापाजी की पहचान वाली मैडम,जिन्होंने मेरे दाखिले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,ने मुझे अपनी क्लास में ले लिया,जिसके कारण क्लास के बीच की दूरी....मेरे और मेरी सहेलियों के बीच भी आ गई.इस नई क्लास में कई लोगों से मेरी दोस्ती हुई...उनमे से एक थी....गाइड....क्यूंकि वर्मा मैडम(मेरी २ री क्लास टीचर)सिंगर थीं....और शायद पढाना उनका पार्ट टाइम जॉब था,तो हम गाइड से ही पढ़ते थे.मुझे आज तक समझ नही आया कि उन्होंने मुझे अपनी क्लास में लेकर अच्छा किया या बुरा?खैर यहाँ मुझसे जिन्होंने भी दोस्ती की,उन्होंने मुझे बहुत परेशान किया.ये लडकियां एक माफिया गैंग की तरह थीं....क्लास की बाकी लड़कियों से अपना काम पूरा करवाना,उनके टिफिन खाना,यहाँ तक की पेपर के समय भी ये यही सारे काम करती थीं.....बताने में बुरा तो लग रहा है,लेकिन हाँ मैं भी उन बाकी लड़कियों में शामिल थी.मम्मी के होते हुए मेरी पढ़ाई में कोई फर्क नही पड़ा और रिजल्ट में भी नही......लेकिन मेरी वजह से उनके रिजल्ट जरूर प्रभावित हुए।
जब मुझे स्कूल जाते हुए एक-दो हफ्ते हुए थे तभी वर्मा मैडम ने मुझे क्लास से स्टाफ-रूम में बुलाया....इस छोटे से रस्ते में ही मैंने अपनी बातों को सोच कर उसमें से अपनी गलतियां निकालने की कोशिश की,लेकिन फायदा नही हुआ,क्यूंकि स्टाफ-रूम आ गया था.अन्दर घुसते हुए ही मेरे आंसू मेरी आंखों के बिल्कुल पीछे छुप कर अपने बाहर आने का इंतजार करने लगे.तभी मैडम ने एक कागज हाथ में देते हुए कहा.."इसे पढो,ये गाना गाकर सुनाओ...मैं जैसा बोलती हूँ...वैसा-वैसा बोलो........सबसे अच्छा दिन इतवार ......बोलो",बस....मुझे याद नही की मैंने दो या चार कितनी लाइन बोलीं.....हाँ गाना पूरा होने से पहले ही मेरे आंसू निकल आए....और मुझे मिला एक अच्छा मौका निकल गया...तब ही मैडम ने पापाजी से कह दिया था कि,"मैं आपकी बेटी को और कभी गाने को नही कहूँगी....मैंने कुछ भी नही किया और वो सिसक-सिसक कर रो रही थी"।
आख़िरकर मुझे ख़ुद ही पांचवी में मैडम को बोलना पड़ा कि,"मैडम मैं गाने में रहना चाहती हूँ"और हमने चार गाने गाये.इस तरह प्रायमरी ख़त्म हुई...अब हमें बगल वाली गर्ल्स स्कूल में दाखिला लेना था,जिसके बारे में हमारी स्कूल में अफवाह थी कि वहाँ के हॉल में पाँच लड़कियों का भूत रहता है...जो कि दशहरा-दीपावली कि एक महीने की छुट्टी के दौरान वहाँ बंद हो गयीं थीं.हम इस स्कूल में एक बार पहले अपनी सहेली के साथ उसकी बहन की क्लास गये थे....ये बहुत ही बड़ा स्कूल था,अगर उसकी बहन हमें बाहर छोड़ने नही आती तो शायद हम बाहर नही आ पाते।
इस नए स्कूल में पढने के लिए मैं बहुत खुश थी....साथ ही साथ भगवान् से प्रार्थना कर रही थी की किसी तरह मेरा अपनी इन सभी सहेलियों से पीछा छुट जाए और मैं नई सहेलियां बनाऊं,भगवान् ने मेरी सुन ली.इस नए स्कूल में,नई क्लास में मुझे एक नई सहेली भी मिली....कविता साहू....मेरे दोनों भाई मुझे इसका नाम ले लेकर चिढाते भी थे,क्यूंकि मैं इसके बारे में कोई मज़ाक बर्दास्त नही कर पाती थी.इसके अलावा भी मुझे यहाँ कई सहेलियां मिलीं और भी कई बातें यहाँ से जुड़ी हुई हैं....जिन्हें बाद में बताऊंगी.
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Thursday, May 28, 2009
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