Wednesday, November 28, 2012

कार्तिक पूर्णिमा: बहते दिये और लंगर



कार्तिक पूर्णिमा...सिर्फ दो बातों की याद दिलाती है...सुबह अंधेरे मे नदी-तालाबों मे तैरते दीयों की रोशनी और गुरुनानक जयंती मे गुरुद्वारे मे होने वाले लंगर की...

ये दोनों यादें बचपन से जुड़ी हुई खास यादों का हिस्सा हैं...मुझे याद है जब मैं स्कूल मे थी तब मेरी कई पंजाबी सहेलियाँ थीं...उनके साथ ही मैं हर गुरुनानक जयंती मे गुरुद्वारे ज़रूर जाती....वहाँ का माहौल ही मुझे बहुत पसंद आता...वहाँ कभी किसी मे कोई भेद नहीं होता..और एक बात जो मुझे हमेशा अच्छी लगती वो ये की रोटी हमेशा हाथ फैलाकर लेनी पड़ती...जो इस बात का अहसास कराती की कोई है जो हमें खाना दे रहा है...कोई हमसे भी बड़ा है...जिसके कारण आज हमारे पेट भरे हुये हैं...और दूसरी बात हम वहाँ घंटों खड़े होकर रोटियाँ बनते देखते...कैसे एक साथ इतने लोग काम मे लगे होते...आटा लगाने के लिए ,रोटियाँ बेलने के लिए और रोटियाँ सेंकने के लिए चढ़ा बड़ा सा तवा तो हमेशा मेरी नज़रों मे होता....और खाना हमेशा स्वादिष्ट ही होता...

कुछ साल बाद जब हम अपने गाँव आए तो यहाँ कई लोग कार्तिक स्नान किया करते थे...और जो नहीं कर पाते वो आखिरी पाँच दिन स्नान करते...और सभी कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह 4-5 बजे,सूर्योदय से पहले नदी और तालाबों मे जाकर पत्तों के दोने मे आते के दिये जलाकर उनकी पूजा करके नदी मे छोडते...मैं भी मम्मी के साथ हर बार जाती...अंधेरे मे एक साथ नदी मे बहते दिये देखना भी अपने आप मे एक अनोखा अनुभव होता था...और उससे भी ज़्यादा अपने दिये को उन सभी दीयों के साथ जाते देखना तो और भी खुशी दे जाता...कई लोग कागज़ की रंग बिरंगी नाव मे अपने दिये रखते,कुछ लोग केले के पेड़ के तने पर दिये रखते...नदियों मे दिये तैरने के लिए हम ठंड की परवाह भी नही करते थे...बहुत अच्छे थे वो दिन....

यहाँ आने के बाद मैंने भी कई बार कार्तिक स्नान किया..पर यहाँ कभी न तो दिये बहाने जा सकी और न ही गुरुद्वारे पर लंगर खाने गयी...पर ये दोनों यादें हमेशा मेरे साथ हैं और कार्तिक पूर्णिमा के आते ही हर साल नयी हो जाती हैं...ये बहुत ही खास यादें हैं...मेरी कहानी मे 

2 comments:

PD said...

अक्सर सिर्फ यादें ही साथ रह जाती हैं.

Himanshu Blogger said...

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